इस दौरान देश में कोरोना के सक्रिय मामलों में भी गिरावट देखी गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में बीते 24 घंटों में कोरोना के 72,287 सक्रिय मामले कम हुए हैं। इसके बाद भारत में अभी फिलहाल कोरोना के 12 लाख 31 हजार 415 सक्रिय मामले हैं। कोरोना की एक्टिव दर की बात की जाए तो ये अभी 4.23% है। भारत की बात करें तो यहां अब तक कुल 2 करोड़ 90 लाख 89 हजार 69 कोरोना मामले सामने आ चुके हैं। देश में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा 3,53,528 हो चुका है। भारत की कोरोना मृत्यु दर फिलहाल 1.22% है।
कोरोना एक्टिव केस मामले में दुनिया में भारत का दूसरा स्थान है। कुल संक्रमितों की संख्या के मामले में भी भारत का दूसरा स्थान है जबकि दुनिया में अमेरिका, ब्राजील के बाद सबसे ज्यादा मौत भारत में हुई है। 8 जून तक देशभर में 23 करोड़ 90 लाख 58 हजार 360 कोरोना वैक्सीन के डोज दिए जा चुके हैं। बीते दिन 27 लाख 76 हजार 96 टीके लगाए गए। वहीं अबतक 37 करोड़ 1 लाख से ज्यादा कोरोना टेस्ट किए जा चुके हैं। बीते दिन 19.85 लाख कोरोना सैंपल टेस्ट किए गए।
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कोरोना पर नई शोध खुशखबरी सीटी वैल्यू कम होने से मरीज को नहीं कह सकते गंभीर रिम्स के शोध में डाक्टरों ने निकाला निष्कर्ष
शोध में यह बताया जाएगा कि कोरोना के पहले फेज से लेकर दूसरे फेज तक लोगों में आरटीपीसीआर रिपोर्ट में सीटी वैल्यू को लेकर जो बैचेनी दिखी वह बिल्कुल गलत थी। अब यह वैल्यू देखकर संक्रमण कम या अधिक होने का अंदाजा लगाना गलत होगा। शोध में पाया गया कि जिस व्यक्ति का सीटी वैल्यू छह या आठ था, उनमें भी कोई गंभीर लक्षण नहीं पाए गए और वे सात से 14 दिनों में ठीक भी हो गए। वहीं जिनका सीटी वैल्यू 24 या 40 था वो भी गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती हुए।
रिम्स के मेडिकल रिसर्च यूनिट के शोधकर्ता डा अमित कुमार बताते हैं कि सीटी वैल्यू के अंक इस तरह से सोशल मीडिया में वायरल हुआ कि लोग घबराने लगे। जबकि सच्चाई यह है कि इस वैल्यू से कोरोना संक्रमण का कुछ लेना ही नहीं है। उन्होंने बताया कि जो शोध किया गया है उसमें जिस व्यक्ति का सीटी वैल्यू छह या आठ था उनमें भी कोई गंभीर लक्षण नहीं पाए गए और वे सात से 14 दिनों में ठीक भी हो गए। लेकिन जिनका सीटी वैल्यू 24 था वो भी गंभीर स्थिति मेंअस्पताल में भर्ती हुए।
आइसीएमआर भी सिटी वैल्यू की गंभीरता की पुष्टि नहीं करता है
आइसीएमआर भी अपनी रिपोर्ट में सीटी वैल्यू की गंभीरता की कोई पुष्टि नहीं करता है। आइसीएमआर की जारी रिपोर्ट में यह कहा गया है कि किसी भी मरीज के सिटी वैल्यू पर उनके संक्रमण का आंकलन नहीं किया जाए। डा अमित बताते हैं कि इसके रिपोर्ट के बाद भी कई देशों ने अलग-अलग रिपोर्ट भी जारी की है। अमेरिका की एक संस्था ने एक रिपोर्ट जारी कर बताया कि कम सिटी वैल्यू होना अधिक खतरनाक है लेकिन इसकी कोई प्रमाणिकता नहीं दिखी।
रिम्स के 300 मरीजों पर हुई शोध
रिम्स में भर्ती 300 मरीजों पर शोध किया गया। शोध में सभी मरीजों के आरटीपीसीआर रिपोर्ट की सैंपलिंग की गई। इन मरीजों में देखा गया कि अलग-अलग सीटी वैल्यू वाले मरीजों में आक्सीजन की मात्रा कितनी है और उन्हेंं कितने आक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। किन मरीजों को किन-किन स्थिति में वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी। साथ ही मरीजों को दिए जाने वाली दवाओं का पूरा ब्योरा व एंटीबॉडी टेस्ट से लेकर अन्य जरूरी जांच की गई। शोधकर्ता डा अमित बताते हैं कि यह एक ऐसा भ्रम पैदा हो गया था जिसमें काफी पढ़े-लिखे लोग सीटी वैल्यू देख डाक्टरी सलाह ले रहे थे। तनाव में उनका बीपी और शुगर बढ़ता गया और कोरोना में यह कारण भी उन्हेंं गंभीर मरीजों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया।
रिम्स के इस शोध में दस लोगों की टीम है, इसमें से पांच डाक्टर हैं, इनके नाम है डा अमित कुमार,डा लखन मांझी, रिम्स निदेशक डा कामेश्वर प्रसाद, डा अनुपा प्रसाद, डा गणेश चौहान सहित अन्य डाटा कलेक्टर के रूप में काम कर रहे हैं।
सिर्फ निगेटिव या पॉजिटिव देखें, सिटी वैल्यू पर न दें ध्यान :
रिम्स के शोध टीम में शामिल चिकित्सक बताते हैं कि शोध के बाद यह कहना उचित होगा कि आरटीपीसीआर जांच कराने वाले सिर्फ निगेटिव या पॉजिटिव रिजल्ट पर ध्यान दें न कि सीटी वैल्यू देखें। सिटी वैल्यू से सिर्फ निगेटिव या पॉजिटिव का अनुमान लगाया जाता है। जांच के दौरान जितने राउंड में वायरस डिटेक्ट होता है उसी के आधार पर सीटी वैल्यू दर्ज होता है। सीटी वैल्यू 34 या उससे अधिक होगा तो रिजल्ट निगेटिव बताया जाएगा और अगर सीटी वैल्यू 34 से कम होगा तो रिजल्ट पॉजिटिव माना जाता है।
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सीटी वैल्यू को लेकर असमंजस को देखते हुए शोध - रिम्स निदेशक
रिम्स के निदेशक डा कामेश्वर प्रसाद ने कहा कि सीटी वैल्यू को लेकर जो असमंजस की स्थिति थी उसे देखते हुए शोध कार्य शुरू किया गया है। आइसीएमआर में भी यही बातें हैं, लेकिन उनका शोध नहीं था, उनकी बातें दूसरे देश में हुए शोध पर अधारित थी। रिम्स में अब पहले से भी अधिक शोध होने लगे हैं। सभी शोधों को राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित भी किया जाएगा। शोध में लगी पूरी टीम प्रमाणिकता के साथ काम कर रही है। इस तरह के रिसर्च को बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि अच्छी बातें सामने आ सके।
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