ठाकुर जी कहते हैं युवा पीढ़ी देश का भविष्य होता है,उसे जितना संस्कारी,योग्य,चरित्रवान,मजबूत बनाया जाए उतना ही हमारा देश मजबूत होगा: प्रकाश झा

  रामगढ़वा पूर्वी चम्पारण(बिहार)

डी एन कुशवाहा की रिपोर्ट-

"दूसरे के मंगल की कामना ही अपने मंगल की प्रसूति है।

- ठाकुर जी कहते हैं "दीक्षा मनुष्य के जीवन में दक्षता लाती है, आत्मनिर्भरता और कौशलता लाती है।" वास्तव में ठाकुर से दीक्षित परिवार एक प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है। जिसके कारण कहीं ना कहीं से लोगों के मन में ठाकुर के प्रति भाव जग जाता है और दीक्षा लोग ग्रहण कर लेते हैं। वास्तव में जो ठाकुर जी को पकड़ा है, उनके आचार्य आचरण में चलते हैं, लोग इन लोगों की बातों में संगति देखते हैं, उन्हीं में लोग ठाकुर को देख पाते हैं, जान पाते हैं और समझ पाते हैं जिसके कारण लोग दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं। उक्त बातें ठाकुर जी के पवित्र पंजाधारी व सह प्रति ऋत्विक प्रकाश झा ने नीरज निराला दादा द्वारा आयोजित ऑनलाइन सत्संग को संबोधित करते हुए गुरूवार की सुबह में कही। साथ ही उन्होंने कहा कि ठाकुर जी को लेकर चलने के लिए, ठाकुर जी को समझने के लिए और अपने जीवन में ठाकुर को जीवंत करने के लिए आचार्य चर्या में चलना बहुत जरूरी है। उनको छोड़कर चलने पर वास्तविक रुप से ठाकुर को समझना मुश्किल हो सकता है। क्योंकि भगवान को समझने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। आगे याजन के बारे में उन्होंने बताया कि जो लोग याजन करते हैं और याजन करने जाते हैं, उनके चरित्र में ठाकुर जी झलकना चाहिए और उनका हावभाव ठाकुरमय होना चाहिए। जिनके पास याजन करने के लिए जाते हैं, उनकी वस्तु स्थिति देख लें, अर्थात उनके पूरे परिवार के परिस्थिति से अवगत हो लें, उनसे पहले समय ले लें फिर याजन करेंगे तो बहुत ही अच्छा रहेगा। अगर बिना समय लिए किसी को ठाकुर जी के बारे में सीधे बताना स्टार्ट कर देंगे तो हो सकता है, उनका ध्यान कहीं और रहेगा, आपकी बातों को वह समझ नहीं पाएंगे, जिससे आपको भी प्रसंता नहीं मिलेगी और वह भी ठाकुर जी से जो लाभ लेना चाहिए नहीं ले पाएंगे। समय का ध्यान रखने से दोनों व्यक्ति को फायदा होता है। आज एपिडेमिक का माहौल है, इससे बचने के लिए यजन, याजन, इस्टभृति, स्वस्तययनी और सदाचार अमोघ अस्त्र है। इस नियम के पालन से मनुष्य बड़ी से बड़ी समस्या से उबर सकता है। उन्होंने बताया है कि यही बचने का एक मात्र पथ है। जैसे तैसे जीवन यापन करने से ही मनुष्य दु:ख और दर्द का भागीदारी बनता है। ठाकुर जी कहते हैं "दूसरे के मंगल की कामना ही अपने मंगल की प्रसूति है।" इसलिए जितना से जितना अधिक दीक्षा हो, इतना मनुष्य का कल्याण होगा, उतना मनुष्य बचने और बढ़ने के पथ पर चल सकेंगे। दीक्षा मनुष्य के लिए परफेक्शन और इवोल्यूशन का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने बताया युवा पीढ़ी देश का भविष्य होता है, उसी के हाथों में देश की रक्षा निहित होती है। इसलिए जितना युवा पीढ़ी को संस्कारी बनाया जाए, योग्य बनाया जाए, चरित्रवान बनाया जाए और हर तरह से मजबूत बनाया जाए, उतना ही हमारा देश हर तरह से मजबूत होते हुए उभरकर हमारे सामने आएगा। सब लोग विवाह नीति का पालन करें, जैसे तैसे विवाह शादी नहीं करें, ताकि संतान संतति तेजस्वी जन्म ग्रहण करें, सुप्रजनन होगा। जितना स्वास्थ्य नियम का पालन किया जाए, सदाचार का पालन किया जाए, उतना रोग ग्रह दोष से हम दूर रह सकेंगे। जन्म और मरण भले ही मुहूर्त नहीं देखता है लेकिन जीने बढ़ने के पथ पर चलने के लिए मनुष्य को मुहूर्त से ही काम करना चाहिए। क्योंकि इससे मनुष्य ही बचने बढ़ने के पथ पर चलता है। जैसे सवेरे उठना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, रोड पर बाएं दाएं का ख्याल रखना दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाता है, सक्रिय रहने से शरीर मजबूत रहता है, निष्क्रिय रहने से मनुष्य रोग ग्रस्त हो जाता है। समय से कोई काम होने पर सम्मान मिलता है। अंतर आत्मा प्रसन्न होता है। जन्म मरण प्रभु के हाथ में होता है लेकिन कर्म मनुष्य के हाथ में होता है, वह जैसा कर्म करेगा, एक दिन वह वैसा ही बन जाएगा। क्योंकि कर्म ही मनुष्य का भाग्य निर्माता होता है। उक्त आशय की जानकारी ठाकुर जी के स्वस्त्ययनी ब्रतधारी व एम के मिशन हाई स्कूल के निदेशक ध्रुव नारायण कुशवाहा ने दी।

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