पटना
लोजपा के पास बिहार में अब कोई विधायक-विधान पार्षद नहीं बचा है। चिराग पासवान संसदीय दल में अकेले पड़ गए हैं। लेकिन लोजपा पर कब्जा किसका रहेगा, यह तय होना अभी बाकी है। सामाजिक न्याय और अयोध्या में मंदिर निर्माण के इर्द गिर्द चल रही। राज्य की राजनीति में बीते 30 वर्षों के दौरान दलों के विधायकों-सांसदों के अलगाव की कम से कम सात बड़ी घटनाएं हुई हैं। इक्का-दुक्का विधायकों के दल बदल हर साल होते रहे हैं। इन सबमें एक बात आम है-अलग हुए सांसद या विधायक अपना अलग दल बनाते हैं। कभी-कभी उनका दूसरे दलों में विलय हो जाता है। मूल दल के संगठन पर सांसदों-विधायकों के आने जाने का कोई फर्क नहीं पड़ता है। लोजपा में नया विवाद उभरा है। लोजपा के पांच सांसद संसदीय दल के बाद संगठन पर भी अपना कब्जा जमा लेते हैं तो यह एक नई राजनीतिक परिघटना होगी।
बिहार में कई बार हो चुका ऐसा
1990 में जनता दल की सरकार बनी, उसके बाद इस दल के कई सांसद और विधायक निकले। सबसे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के समर्थक जनता दल के विधायक निकले। उन्होंने सजपा राष्ट्रीय (नवम्बर 1990) के नाम से नए दल का गठन किया। अगले साल भाजपा के विधायकों के टूटने की बारी थी। उस समय एक तिहाई विधायक एकसाथ निकल कर दल बदल कर सकते थे। भाजपा के 39 विधायक थे। 13 निकल गए। संपूर्ण क्रांति दल बना लिया। बाद में इसके विधायक जनता दल में शामिल हो गए। जार्ज फर्नांडीस की अगुआई में निकले सांसदों के दल की भी नई पार्टी बनी। यह 1994 में हुआ। पहले जनता दल जार्ज। बाद में समता पार्टी बनी।
भाकपा में भी हुआ था विभाजन
तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के विरोध के चलते भाकपा विधायक दल में भी फूट पड़ी थी। तब भाकपा के बागी विधायकों ने क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टी के नाम से नया दल बनाया। बाद के दिनों में इसके विधायक राजद में चले गए। आज का राजद भी जनता दल से निकला हुआ दल है। 1997 में जब जनता दल ने तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के संगठन पर नेतृत्व का स्वीकार नहीं किया, लालू प्रसाद की अगुआई में राष्ट्रीय जनता दल के नाम से नए दल का गठन हुआ। मूल जनता दल कायम रहा। बहुत दिनों बाद 2003 में जनता दल में समता पार्टी का विलय हुआ। नया नाम जनता दल यूनाइटेड हो गया। इससे पहले जनता दल से अलग होकर रामविलास पासवान ने 2000 में लोजपा का गठन किया। 2005 में लोजपा विधायक दल में भारी टूट हुई। पार्टी बची रह गई। उससे भी बुरी टूट का सामना लोजपा इस समय कर रही है।
- सांसदों-विधायकों के अलग होने पर भी बची रहती हैं पार्टियां
- लोजपा पर कब्जा हुआ तो नया इतिहास रचेंगे पारस
- नया दल या किसी दल में विलय की रही है परिपाटी
- 2005 में भी लोजपा को लगा था ऐसा ही झटका
इनके विधायक भाग जाते हैं
बिहार विधानसभा में सपा और बसपा के विधायक अक्सर भाग जाते है। 2020 में बसपा टिकट जीते जमां खान जदयू में चले गए। इससे पहले भी बसपा के किसी विधायक ने बिहार विधानसभा में इसी पार्टी में रहते अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। यही हाल सपा का रहा है। उसके विधायक जीते और सत्तारूढ़ दल में शामिल हो गए।पिछली बार रालोसपा के साथ भी यही हुआ था। 2015 के चुनाव में जीते उसके दोनों विधायक जदयू में चले गए। अब तो रालोसपा का जदयू में विलय हो गया है। मौजूदा विधानसभा में लोजपा के इकलौते विधायक जदयू में चले गए। विधान परिषद की इकलौती लोजपा सदस्या ने भाजपा का दामन थाम लिया।
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