इतिहास के झरोखे से-
रूस का जब यूक्रेन पर कब्जा हुआ, तो भी उसके कुछ पश्चिमी इलाके पूरी तरह से पोलैंड के नियंत्रण में थे. ये वे इलाके थे. जिन पर कज़ाक सेना या उनका हेटमनाटे कब्जा नहीं जमा पाया था, लेकिन इसी दौरान एक और घटना यह हुई कि पोलैंड और लिथुयेनिया का जो संघ था वह टूट गया. रूस ने तुरंत ही इसका फायदा उठाया और वहां के ज्यादातर इलाकों को अपने कब्जे में ले लिया. सिर्फ गैलीशिया का इलाका ही इसका अपवाद था जिसे आस्ट्रिया ने अपने कब्जे में ले लिया था.
यही वह मौका था जब यूक्रेन का रूसीकरण शुरू हुआ. उसी यूक्रेनका जिसका लंबे समय तक पोलैंड करण हुआ था. यूक्रेन मेंप्रांत बनाए गए जो रूस के अन्य प्रांतों की तरह ही उसका हिस्सा थे. प्रशासन, सेना वगैरह के नाम पर बड़ीसंख्या में रूसी भी वहां बसाए गए. अब यूक्रेन के सारे प्रांत सेंट पीटर्सबर्ग केअधीन थे.
इस पूरे दौर में यूक्रेन कीअपनी उन सभी पहचान को मिटाने की कोशिश की गई जो उसे एक राष्ट्र की तरह जोड़ सकतीथीं. धार्मिक स्तर पर रूस के आर्थोडाॅक्स चर्च नेपोलैंड से आए रोमन कैथोलिक चर्च को दबाना शुरू कर दिया। इसका असर भी पड़ा क्योंकिआर्थोडाॅक्स को सरकारी प्रश्रय हासिल था.
यूक्रेन के बाद जब क्रीमिया पर रूस का कब्जा हुआ तो वहां एक नया शहर बसाया गयाजिसका नाम रखा गया- नोवो रसिया, यानी नया रूस। इस नए रूस में बड़ी संख्या में यूक्रेनके लोग बसाए गए, कुछ रूसी भी यहां भेजे गए. यूक्रेन का जो पुराना शासक वर्ग था उसका भी काफीतेजी से रूसीकरण हुआ. इसी दौरान इसके रूसी शासक वर्ग के साथ वैवाहिकरिश्ते भी बने, जिसके कारण भी इस वर्ग का चरित्र काफी बदल गया.
लेकिन वहां के आम लोग अपनी पुरानी संस्कृति से ही जुड़े रहे. उनकी आर्थिक स्थिति काफी खस्ता हो गई। किसानों औरकृषि मजदूरों की स्थिति तो लगातार खराब होती रही. उनके पासजमीन कम थी और उन्हें भारी लगान देना पड़ता था. इस दौरानकईं जगह नाराज किसानों ने आंदोलन भी किए, लेकिन आमतौर पर ऐसे आंदोलन ठीकवैसे ही दबा दिए गए, जैसे उस दौर में दबाए जाते थे.
बावजूद इसके जब ये आंदोलन बढ़ने लगे तो कृषिमजदूरी और बेगारी वगैरह की प्रथाएं वहां खत्म होने लगीं. हालांकि किसानों की हालत इससे भी बहुत ज्यादा सुधरीनहीं.इस स्थिति में थोड़ा सुधार तब हुआ जब पूर्वी यूक्रेन में कुछ उद्योग शुरू हुए. इसके पहले तक यूक्रेन के शहरी लोग औद्योगिक उत्पादोंके लिए पूरी तरह रूस में बने सामानों पर ही निर्भर थे.
ग्रामीण इलाकों के लोगों को ऐसे सामानों की कोईजरूरत नहीं थी. लेकिन जब ये उद्योग शुरू हुएतो ग्रामीण इलाके के कईं लोगों को इन उद्योगों में रोजगार मिला. हालांकि इनमें से ज्यादातर उद्योग रूस से सटे इलाकेमें ही लगे थे.
जब 19 वीं सदी शुरू हुई तो यूरोप के इतिहास में नए अध्यायजुड़ने लगे. 1805में खारकीवमें यूक्रेन का पहला विश्वविद्यालय खुला. हालांकि यहपूरी तरह रूस के नियंत्रण वाला संस्थान था लेकिन यूक्रेन के स्थानीय इतिहासअकादमिक अध्ययन शुरू हुआ. इसके अलावा यूक्रेनी भाषा केसाहित्य पर भी यहां काफी काम हुआ. और फिर यहीं पर यूक्रेन केराष्ट्रीय आंदोलन की नींव भी रखी गई.
इस दौर ने कईं बड़े साहित्यकारों और कलाकारों को भी जन्म दिया. इसी दौर में यूक्रेनी भाषा के मशहूर कवि हुए टारसशेवचेंको. उनकी देशभक्ति की कविताएं जल्दही रूसी शासकों को चुभने लगीं. जल्द ही शेवचेंको की कविताओंपर पाबंदी लगा दी गई और उन्हें गिरफ्तार करके देश निकाला देकर मध्य एशिया भेज दियागया. यह उस समय की बात है जबयूक्रेन की ज्यादातर आबादी निरक्षर थी और वहां शिक्षित लोग सिर्फ 17फीसदी ही थे.
इस दौरान रूस ने यूक्रेन का नया इतिहास लिखने की कोशिश भी की जिसमें यूक्रेनको वृहत्तर रूस का एक कबीला ही बताया गया.जल्द ही आस्ट्रिया का शहर गैलिशिया यूक्रेन के राष्ट्रीय आंदोलन का केंद्र बनगया। यूक्रेनी भाषा के लेखकों और कवियों की रचनाएं भी यहीं प्रकाशित होती थीं।यूक्रेन में उसके लिए जगह नहीं थी.
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