शनिवार का दिन।
लंदन के हाइ़़ड पार्क में वसंत खिला हुआ था। मेरी अमेरिकी दोस्त धूप में संवलाने के जतन कर रही थी, वहीं मैं पोखर में पैर डाले मछलियां ताक रही थी। इतना सुंदर वीकेंड मैंने हमारे यहां नहीं देखा। मां कामकाजी थी, जो इतवार को कभी कपड़ों के ढेर से जूझती, तो कभी न दिखने वाले मकड़ी के जालों से। रात तक हमें एक पस्त मां मिलती, जो मशीनी रफ्तार से अगली सुबह की तैयारी में जुटी होती। वहीं पश्चिम की मांएं इंसान थीं- खुद को भरपूर जीती हुई।
हल्की गर्मी में भीतर की तहें खुल रही थीं तभी धूप सेंकती दोस्त की आवाज आई। 'मेरे स्कूल से लौटने की दो वजहें थीं- कार्टून और मां के हाथ का खाना!' जैसे इतना काफी नहीं हो, मुझे हकबकाते हुए उसने आगे जोड़ा- मैं भी वही मां बनना चाहती हूं, जिसके खाने के लिए बच्चे घर लौटें। छटांक-भर कपड़े और आंखों पर धूप का चश्मा चढ़ाए दोस्त अपने सपने बांट रही थी। मैं कुलबुला उठी। रसोई की ये राई मेरे भीतर क्यों नहीं छिटकती!
ये वो वक्त था, जब मैं प्रेम में आकंठ डूबी हुई थी और हाथ आया अच्छा मौका छोड़, मुल्क लौटकर शादी करने की तैयारी में थी। भावी पति खाने का बेहद शौकीन, लेकिन तब भी मेरे भीतर ये नहीं आया कि उसे रिझाने के लिए ही सही, मैं लंबा-चौड़ा खाना पकाऊं। टेबल सजाऊं या गुलदान की जगह खुद को ही सजा लूं। एक बार भी नहीं। प्रेमीनुमा पति ने एकाध बार टटोला भी, फिर मेरे साफ इनकार पर चुप लगा गया। मैं खुशनसीब थी, लेकिन सारी स्त्रियों की लकीरें एक-सी नहीं होतीं। उस हैदराबादी महिला की भी नहीं, जिसके पति ने उसके मटन करी न पकाने पर भड़ककर पुलिस को कॉल कर दिया।
घटना तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद की है, जब पुलिस कंट्रोल रूम में बार-बार फोन घनघनाने लगा। कॉल करने वाले युवक की शिकायत थी कि डिमांड पर हरदम झट से लज्जतदार खाना पका देने वाली उसकी बीवी बार-बार कहने पर भी मटन करी नहीं बना रही। लगातार आते कॉल से परेशान पुलिस आखिरकार युवक के घर पहुंची और उसे नशे में पाकर थाना ले आई। अगली सुबह माफी मांगने पर उसे छोड़ा गया।
खबरों में इतनी ही कहानी है, लेकिन इससे पहले का किस्सा कहीं दर्ज नहीं। झट से खाना हाजिर करने वाली बीवी की कहानी! शौहर के यकीन की कहानी, जिसमें वो जब चाहे, जैसा चाहे खाना मांगेगा, और बोतल के जिन्न की तरह फट्ट से हंडिया पककर आ जाएगी। नशे में भभकते मुंह के साथ वो, थोड़ी और चटनी, थोडा ज्यादा भात मांगेगा- और अघाने के बाद ताजा कलाकंद की कमी बीवी के साथ से पूरी कर लेगा।
आधी रात में शराब के नशे में मटन करी मांगते युवक को पुलिस ने शायद यही कहा हो कि आइंदा से इमरजेंसी नंबर पर कॉल मत करना। शायद ही किसी पुलिसवाले ने ये समझाइश दी हो कि अगली बार मटन करी खाने का दिल करे तो खुद पका लेना। वैसे इस समझाइश की कोई जरूरत भी नहीं। ये मियां-बीवी का आपस का मामला है, वैसा ही जैसा हमेशा से माना आ रहा है, फिर चाहे पूरब हो, या पश्चिम।
खाना पकाने के पुराने चलन को समझने के लिए दुनियाभर में कोशिशें हुईं। इसी कड़ी में उत्तरी कैरोलिना के हिस्ट्री म्यूजियम ने अपने यहां 18वीं सदी के रसोईघर को संजोया। बर्फ और तूफान से बचने के लिए पत्थर की दीवारों पर कहीं-कहीं लकड़ी का काम दिखता है। दो चूल्हे हैं, जिनपर कभी खाना पकता होगा। लकड़ी की नए ढंग की टेबल है, जो म्यूजियम वालों ने विजिटर्स के लिए रखी है। ‘वेन डिनर वॉजन्ट क्विक एंड ईज़ी’ नाम से इस रसोई पर लेख छपा, जिसमें बताया गया कि खाना पकाने के लिए औरतों को क्या-क्या करना होता था।
घर के पिछवाड़े सब्जियां उगाई जाती थीं। कूट-पीटकर मसाले तैयार होते थे, जिन्हें सूखे हुए मर्तबानों में सहेजकर रखा जाता। कई बार घर के मुखिया को कुछ खास सब्जियां सालभर चाहिए होती थीं। ऐसे में गृहणी का फर्ज होता कि वो सारी जमीन उन खास सब्जियों से भर दे और फिर उन्हें तराशकर, सुखाकर, संभालकर रखे ताकि मांग के अनुसार डिनर सर्व हो सके।
बात यहीं खत्म नहीं होती। हर खाने से पहले चूल्हा सुलगता, जिसके लिए सूखी लकड़ियां जमा करना और फिर धुएं में कलेजा जलाना भी निकम्मी औरतों के जिम्मे था। अलग-अलग किस्म की लकड़ियों पर पके खाने का स्वाद भी अलग होता, तो औरतों का काम ये भी था कि वे घर पर हर तरह की लकड़ियों का स्टॉक रखें ताकि हेड ऑफ द फैमिली की जबान का स्वाद बदलता रहे।
मर्दानी जीभ पर ये जायका ऐसा चढ़ा कि बराबरी का स्वाद ही चला गया। रसोई में घुसे बगैर तर माल खाने के लिए वे नई-नई तरकीब खोजने लगे। इसी दौर में एक अमेरिकी अमीर जॉन एडम्स ने ऐलान कर दिया कि पुरुषों के दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है। फिर भला कौन-सी औरत होगी, जो अपने पसंदीदा मर्द के दिल में नहीं बसना चाहेगी! तो दिल की रानी बनने की हसरत लिए वे किचन में घुस गईं और हल्दी-लहसुन से महमहाने (महकने) लगीं।
खूबसूरत कविता करती स्त्री ने कलम तोड़कर चूल्हे की लकड़ी बना दी। अब सब ठीक था। मर्द पहाड़-समंदर नापेंगे और जनानियां मक्खन-सी नर्म रोटियां बनाने की तरकीबें सोचेंगी।
साल 1911 में पेरिस के संग्रहालय से मोनालिसा की पेंटिंग चोरी हो गई और दो साल तक गायब रही। जिस जगह पेंटिंग जड़ी थी, उस खाली-सफेद दीवार को देखने के लिए दो साल में इतने लोग आए, जितने बीते 12 सालों में नहीं आए थे। वो मोनालिसा थी- ऐसी तस्वीर, जिसे मर्द कलाकार ने उकेरा था। स्त्रियों के पास ये छूट नहीं। वे दुनिया की तस्वीर से गायब होकर रसोई में कैद हैं और सदियों से किसी को इसका ख्याल तक नहीं आया।
[लेखक: मृदुलिका झा]
0 टिप्पणियाँ